कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के पूरी नामक जिले में स्थित है। यह एक ऐतिहासिक एवं अद्भुत मंदिर है। यह सूर्य मंदिर पूर्ण रूप से सूर्य देवता को समर्पित है जिसके कारण इस मंदिर के आकार को सूर्य देवता के रथ के आकार का बनाया गया है। इस मंदिर के मुख्य द्वार से लगे हुए दोनों दीवारों पर 12-12 पहिए बनाए गए हैं जो किसी रथ के पहिए के समान प्रतीत होते हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह 24 पहिए दिन के 24 घंटों को प्रदर्शित करते हैं जबकि कुछ अन्य लोगों का यह भी मानना है कि यह 24 पहिए साल के 12 माह का प्रतीक हैं। कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के सर्वश्रेष्ठ मंदिरों में से एक माना जाता है जिसे देखने के लिए प्रतिदिन भारी मात्रा में लोग आते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर की कहानी – Story of Konark Sun Temple
पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब ने नारद मुनि के साथ दुर्व्यवहार किया था जिससे आहत होकर नारद मुनि ने उन्हें कुष्ठ रोग का श्राप दिया था। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए साम्ब ने कोणार्क में बहने वाली चंद्रभागा नदी के समुद्र संगम पर 12 वर्षों तक सूर्य देव की घोर तपस्या की थी जिसे प्रसन्न होकर उन्होंने साम्ब को नारद मुनि के श्राप से मुक्त कर दिया था। वास्तव में सूर्य देव को सभी रोगों का नाशक माना जाता है। कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति के पूरे शरीर पर सूर्य की पहली किरणें पड़ती है तो इससे उसे व्यक्ति के सभी रोगों का निवारण हो जाता है। इस घटना के बाद जब भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे तो उस दौरान उन्हें स्वयं विश्वकर्मा जी के द्वारा निर्मित सूर्य देव की एक अलौकिक मूर्ति मिली थी। इसके तुरंत बाद उन्होंने कोणार्क में सूर्य मंदिर बनाने का निर्णय लिया था। कहा जाता है कि वर्तमान समय में यह मूर्ति जगन्नाथ मंदिर में स्थापित करी गई है।
कोणार्क सूर्य मंदिर किसने बनवाया था – Who Built Konark Sun Temple
कोणार्क सूर्य मंदिर को 13वीं शताब्दी (1238-1264 ई के मध्य) गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने बनवाया था। यह मंदिर गंग वंश के वैभव एवं ऐतिहासिक परिवेश का प्रतिनिधित्व करता है। इस मंदिर में 24 रथ के पहियों के साथ-साथ घोड़े की आकृति भी बनायी गई है जो हफ्ते के 7 दोनों को प्रदर्शित करता है। भारतीय ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से यह मंदिर भारत के महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है।
कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास – History of Konark Sun Temple
जैसा कि हमने आपके ऊपर बताया कि कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में किया गया था। इस मंदिर का निर्माण करने के लिए गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने लाल रंग के बरुआ पत्थर एवं काले रंग के ग्रेनाइट पत्थरों का उपयोग किया था जो उस समय के बेहतरीन एवं मजबूत पत्थरों में से एक माने जाते थे। हिंदू धर्म के अनुसार यह मंदिर भारत के प्रसिद्ध देव स्थलों में से एक है। इस मंदिर को आंतरिक एवं बाहरी रूप से सुंदर बनाने के लिए पत्थरों पर बेहद शानदार नक्काशी की गई है जिससे इस मंदिर की सुंदरता में और अधिक निखार आता है। कोणार्क सूर्य मंदिर देश भर में अपनी मूर्तिकला एवं सुंदर नक्काशी के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर की सुंदरता एवं ऐतिहासिक प्रमाण को देखते हुए यूनेस्को ने इसे वर्ष 1984 में विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया था।
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कोणार्क सूर्य मंदिर का वास्तुकला – Architecture of Konark Sun Temple
कोणार्क सूर्य मंदिर को लाल रंग के बलुआ पत्थर की सहायता से बनाया गया है जिसकी बाहरी दीवारों को सात घोड़े एवं 24 रथ के पहियों से सुसज्जित किया गया है और जो इस मंदिर को एक बेहद विशेष आकृति भी प्रदान करती हैं। कहा जाता है कि यह मंदिर हिंदू धर्म के प्रमुख पूजा स्थलों में से एक है। यह मंदिर बाहरी एवं अंदरुनी रूप से बेहद आकर्षक लगता है। इस मंदिर की आकृति को सूर्य देवता के रथ के समान बनाया गया है। कहा जाता है कि कोणार्क सूर्य मंदिर में 8 ताडियां बनायी गईं है जो दिन के 8 प्रहर को संदर्भित करती हैं। कोणार्क सूर्य मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक भव्य रथ की मूर्ति बनाई गई है जिसे सात घोड़े खींचते हुए नजर आते हैं। इन घोड़ों की मूर्तियों को कुछ इस प्रकार बनाया गया है कि वह दौड़ते हुए प्रतीत होते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर के टॉप-10 रोचक तथ्य – Top-10 interesting facts about Konark Sun Temple
कोणार्क सूर्य मंदिर के टॉप 10 रोचक तत्व कुछ इस प्रकार हैं:-
- कोणार्क सूर्य मंदिर में कभी भी पूजा नहीं होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि समय के साथ इस मंदिर में मौजूद सूर्य देव की मूर्ति किसी कारणवश खंडित हो गई थी और हिंदू धर्म के अनुसार किसी भी खंडित मूर्ति का पूजन करना वर्जित है। यही कारण है कि कोणार्क मंदिर में कभी भी पूजा नहीं की जाती है।
- कोणार्क सूर्य मंदिर में तरह-तरह की मूर्तियां मौजूद है जिनमें विशेष प्रकार की शिल्प कलाएं भी मौजूद हैं। यह शिल्प कला देखने में बेहद खूबसूरत एवं आकर्षक लगते हैं जिसके कारण इसे देश के सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक स्थलों में गिना जाता है।
- कोणार्क सूर्य मंदिर में एक धूप घड़ी मौजूद है जो रथ के 24 पहियों के रूप में बनाई गई है। यह उस समय की उत्कृष्ट तकनीक का एक बेहतर उदाहरण माना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में उपस्थित पहियों की परछाई को देखकर समय का अनुमान लगाया जाता था।
- कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार कोणार्क सूर्य मंदिर के शिखर पर एक चुंबकीय पत्थर मौजूद है। कहा जाता है कि इस चुंबक के पत्थर के कारण समुद्र के सभी बड़े-बड़े जहाज जब भी इस मंदिर के करीब से गुजरते हैं तो वह अपने आप ही इस मंदिर की ओर आकर्षित हो जाते हैं।
- 15वीं शताब्दी में कुछ आक्रमणकारियों द्वारा कोणार्क सूर्य मंदिर को ध्वस्त करने का प्रयास किया गया था जिसके कारण इस मंदिर में स्थापित की गई अधिकांश मूर्तियां क्षतिग्रस्त हो गई थी। समय के साथ-साथ यह मंदिर रेत से काफी हद तक ढक चुका था। परंतु 20वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन द्वारा इस मंदिर की मरम्मत का कार्य शुरू करवाया गया था और इसे एक पर्यटक स्थल के रूप में चयनित किया गया।
- भारतीय ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कोणार्क सूर्य मंदिर एक विशेष महत्व रखता है जिसके कारण यहां प्रति दिन भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।
- कुछ इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर में मौजूद मूर्तियां एवं चक्र रूपी पहिये कालिंग वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है जो मुख्य रूप से जीवन चक्र को दर्शाने का कार्य करता है।
- कोणार्क सूर्य मंदिर अपने समय के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा पद्धति एवं धार्मिक सिद्धांतों का प्रतीक माना जाता है क्योंकि इस मंदिर में उसे समय के आधुनिक निर्माण सामग्रियों का प्रयोग किया गया था।
- कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण करने के लिए कुछ विशेष प्रकार के काले पत्थरों का प्रयोग किया गया था जिसके कारण इसे ‘Black Pagoda’ भी कहा जाता है।
- कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के बेहतरीन पर्यटक स्थलों में से एक है जिसमें मौजूद मूर्तियों एवं अद्भुत वास्तुकलाओं को देखने के लिए देश-विदेश से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।
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